पावन चिंतन धारा आश्रम में लोगों ने जानी श्रीकृष्ण की महिमा

गाज़ियाबाद। पावन चिन्तन धारा आश्रम, मुरादनगर में परम पूज्य डॉ. पवन सिन्हा गुरुजी के सान्निध्य में उनकी उद्घोषणा से श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव यानी जन्माष्टमी के उत्सव पर धार्मिक जगत में एक क्रांति का सूत्रपात हुआ और आश्रम की एक बच्ची सुरभि नारायण क्षेत्र में श्रीकृष्ण कथा वाचन के लिए व्यासपीठ पर बैठीं।

परम पूज्य श्री गुरूजी ने सभी कृष्ण भक्तों को संबोधित करते हुए सर्वप्रथम सभी को श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की बधाई दी और गर्व एवं प्रगाढ़ भाव के साथ सभी को आश्रम की अत्यंत उत्कृष्ट और अनुकरणीय उपलब्धि से अवगत कराते हुए कहा आज आश्रम की एक बच्ची व्यासपीठ पर बैठकर श्री कृष्ण जी के जीवन की कथा सुनाएंगी और उनके जीवन के अनेक रहस्यों का उद्घाटन भी करेंगी। आश्रम के बच्चों को व्यासपीठ पर बैठे हुए देखना बहुत ही गौरव के क्षण हैं। हमारी जो परंपराएं हैं उनमें अपनी नई पीढ़ियों को तैयार करना ज़रूरी हैं। समय रहते युवा आगे आएं और अपने दायित्व संभालें। आज देश को ऐसे युवाओं की ज़रूरत है जो देश को धर्म के सही स्वरूप को लोगों को अवगत कराएं। आज आश्रम के बच्चों को आपकी शुभकामनाओं की जरूरत है ताकि हम अपनी सनातन संस्कृति के लिए कुछ सार्थक कर सकें। परमपूज्य डॉ. पवन सिन्हा गुरुजी ने देश के युवाओं का आह्वान करते हुए कहा कि उन्हें शीघ्र ही देश के कामों के लिए तैयार होना होगा। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के शुभारंभ आश्रम की सचिव और भारतीय ज्ञान शोध संस्थान की निदेशक श्रीगुरु मां डॉ. कविता अस्थाना जी द्वारा आश्रम प्रांगण में स्थित नारायण क्षेत्र में श्री कृष्ण जी का तिलक वंदन एवं दीप प्रज्वलन से होता है। उसके उपरान्त उन्होंने व्यासपीठ पर शोभायमान महिमा वाचक श्रीमती सुरभि जी का तिलक वंदन किया और स्नेहाशीष दिया। 

श्रीकृष्ण के जीवन के हर सूक्ष्म से सूक्ष्म रहस्यों को उजागर करते हुए व्यासपीठ पर विराजमान महिमा वाचक  श्रीमती सुरभि जी ने गुरु वंदना और गणेश स्तुति करते हुए श्री कृष्ण के जीवन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों की ओर संकेत किया कि अंतत: श्रीकृष्ण, श्रीराम, गुरु महाराज जी को इस धरती पर क्यों जन्म लेना पड़ा? वे तो इतने सर्वशक्तिशाली हैं कि पूरे ब्रह्मांड को नियंत्रित कर सकते हैं तो फिर मनुष्य रूप में जन्म क्यों लिया? धर्म की स्थापना क्यों? आखिर कौन है कंस? कौन है वासुदेव? देवकी और वासुदेव के घर ही जन्म क्यों? महिमा वाचक सुरभि जी ने श्रीकृष्ण की वंशावली का उल्लेख करते हुए दर्शकों को यह बताया कि हमारे इतिहास में दो बड़े वंश हुए हैं| सूर्य वंश जिससे श्री राम जी आते हैं एवं चन्द्र वंश जिससे श्री कृष्ण आते हैं।चन्द्र वंश में ही बहुत सारे अन्य वंश हो जाते है, यदुवंश, भोजवंश, माधव वंश, वृषिण वंश जिसके स्वयं कृष्ण जी हैं| कथा के दौरान श्री कृष्ण के तीन जन्मों का भी  वर्णन करते हुए बताया गया -प्रशिन और सुतपा से प्रशिनगर्भ के रूप में, अदिति और कश्यप के पुत्र उपेन्द्र (वामन) के रूप में और देवकी एवं वासुदेव के पुत्र कृष्ण के रूप में। महिमा वाचक श्रीमती सुरभि जी ने वासुदेव जी के वंशावली और श्री कृष्ण के भाइयों के बारे में भी विस्तार से समझाया। हम बलराम जी के अतिरिक्त किसी और को नहीं जानते लेकिन बलराम सहित गद, सारण, दुर्मुद, विपुल, ध्रुव, कृत, सुभद्र, भद्रवाह, दुर्मुद, भद्र, नन्द, उपनन्द, कृतक, शूर, केशी, उरुवल्क, विप्रष्ठ, श्रम, प्रतिश्रुत, कल्प्वर्ष, वसु, हंस, सुवंश, पुरुविश्रुत आदि और भी भाई  हैं। नंद बाबा और यशोदा जी भी साधारण मनुष्य नहीं हैं। वे पूर्वजन्म में एक श्रेष्ठ वसु थे, उनका नाम था द्रौण और उनकी पत्नी का नाम था धरा। 

कंस की धूर्तता और क्रूरता से सभी परिचित हैं। लेकिन सभी यह नहीं जानते कि कंस को यह मालूम है कि वह पहले कालनेमि नाम का असुर था और उस समय भी विष्णु जी ने ही उसका वध किया था।इसलिए वह यदुवंशियो समाप्त कर देना चाहता था। कंस एक - एक करके देवकी और वासुदेव की छह संतानों - कीर्तिमान, सुषेण, भद्रसेन, मानु, सम्मर्दन, भद्र आदि का निर्ममता से मार डालता है! सातवीं संतान योगमाया के बारे में सभी जानते हैं। श्री कृष्ण का जन्म होता है 27 जुलाई, 3112 बीसीई को रोहिणी नक्षत्र, निशीथ काल और सूतिका गृह में।

महिमा वाचक सुरभि जी बताती हैं कि कैसे भगवान जन्म के उपरांत अपने माता पिता को अपने चतुर्भुजी रूप का दर्शन देते हैं, कैसे एक माता पिता अपने बालक नवजात को उसकी सुरक्षा की खातिर अपने से दूर कर देते हैं। कितना कष्ट! कितनी पीड़ा! कितना बड़ा त्याग! मानव मात्र के कल्याण के लिए! कैसे बाल कृष्ण की एक एक बाल सुलभ कीड़ा को उत्सव की तरह मनाया गया और उनकी रक्षा के लिए दुर्गा कवच का पाठ किया गया। वे श्री कृष्ण जो हम सबकी रक्षा करते हैं, उनकी रक्षा के लिए दुर्गा कवच का पाठ किया गया। कितनी शक्ति होती है हमारे शास्त्रों के मंत्रों में! सुरभि जी द्वारा श्री कृष्ण के जीवन का इतना अद्भुत वर्णन किया गया कि एक एक घटना, एक एक बल सुलभ क्रीड़ा और छवि प्रत्यक्ष हो उठी। उन्होंने अपनी कथा के दौरान श्री कृष्ण जी के बाल जीवन, दान और परवरिश को वर्तमान समय से जोड़ते हुए कहा कि देवकी मैया धूल मिट्टी से सने कृष्ण को गले से लगाती हैं, उन्हें डांटती नहीं हैं लेकिन हमारा बच्चा हमारी इंस्ट्रक्शन से ओवरलोडेड हो जाता है कि वह कुछ क्रिएटिव नहीं सोच पाता। हम बच्चों में मनुष्यता के स्किल डेवलप करना भूल गए। हमारे बच्चे मोबाईल पर गेम खेलते हैं लेकिन कृष्ण और बलराम पेड़ों पर बंदर की तरह उछलकूद करते हैं, जानवरों के साथ खेलते हैं। जिस प्रकृति में हम रहते हैं उस प्रकृति की लर्निंग हो रही है। आंख मिचौनी खेलने से फाइन मोटर और ग्रॉस मोटर स्किल डिवेलप हो रहे हैं। बच्चा तब बड़ा इन्सान बनेगा जब उसकी सोच, उसका विचार बड़ा होगा। ईश्वर साधु व्यवहार को ही दर्शन देंगे, और वासुदेव जी की विशालता, उनका त्याग उन्हें साधु बनाता है। उन्होंने अपनी कथा में दो बातों की ओर विशेष ध्यान आकर्षित किया। एक दान की महत्ता और दूसरा गौ धन। उन्होंने बताया कि 

हमारी संस्कृति बहुत संस्कारवान है। हमारी संस्कृति यह सिखाती है कि जिनके कारण हमें यह सब मिला है उनका धन्यवाद करें, दान करें, सेवा करें। जो ईश्वर से मिला है उसे समाज में बांट दिया जाए। जैसे श्री कृष्ण के जन्म पर वासुदेव जी 10 हज़ार गाय का दान करते हैं। और नंद बाबा भी 2 लाख गाय, सोने के आभूषणो का दान करते हैं। और हम क्या करते हैं? हम भय से दान करते हैं। आज गायों की क्या स्थिति है। इतना समृद्ध भारत है, जो गोप गोपियां सोना-चांदी पहनते थे वह सब गौ धन से ही था। उस समय गौ ही एकमात्र संपत्ति होती थी। लेकिन आज गौ की कितनी दयनीय स्थिति हो गई है। उन्होंने व्यासपीठ से यह अनुरोध किया कि गौ धन को पुन: राष्ट्र संपत्ति घोषित किया जाए। 

सुरभि जी ने कथा के अंत में परम पूज्य प्रो पवन सिन्हा गुरुजी के प्रति हृदय से कोटि कोटि धन्यवाद देते हुए कहा कि यह कोई सामान्य बात नहीं है कि एक गुरु अपना पद अपने आश्रम के एक बच्चे को दे दें। हमें आश्रम की शक्ति को पहचानना होगा। हमारा आश्रम विशिष्ट और दिव्य है। यहां श्री गुरुजी की ट्रेनिंग का यह परिणाम है कि आज मैं आप सभी के समक्ष श्री कृष्ण जी के बारे जो कुछ भी कहने का साहस कर सकी हूं। यह सब श्री गुरुजी की कृपा से है। वे नारायण स्वरूप हैं!  मुझे आशा है कि आप सभी ने श्रीकृष्ण जी की उपस्थिति को उसी रूप में अनुभूत किया होगा जिस रूप में आप उन्हें देखते हैं। श्री कृष्ण अपनी कृपा हम सभी पर बनाए रखें। हम सभी उनके योगेश्वर रूप को पहचान सकें! 

श्री गुरुजी ने महिमा वाचक द्वारा कही गई कथा के बारे में कहा कि आज ऐसे तथ्य उजागर हुए हैं जिनकी चर्चा कहीं नहीं होती। श्री कृष्ण को उनकी संपूर्णता में समझना होगा। आश्रम, अध्यात्म एक्टिविटी की जगह हैं। ईश्वर आपसे कुछ विशिष्ट करवाना चाह रहे हैं उसे समझिए। 

आश्रम के ये बच्चे हीरे हैं और ये बच्चे अपनी चमक से चमकना हैं। अब आपको चंद्रमा से सूर्य बनना होगा, क्योंकि चंद्रमा सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होता है। और सूर्य को दूसरों को प्रकाशित करने के लिए बहुत तपना पड़ता है। अब आपको सूर्य बनना होगा। ये पूरा भारत, पूरा विश्व आपकी प्रतीक्षा कर रहा है। 

श्री कृष्ण के जन्मोत्सव पर भजन, नृत्य, आरती आदि से जन्माष्टमी का उत्सव पूर्ण हुआ। इस अवसर पर अनेक शहरों से आश्रम परिवार के सदस्य नारायण क्षेत्र में उपस्थित थे और लाखों भक्तगण आश्रम के यू ट्यूब के माध्यम से जुड़े हुए थे।

इस अवसर पर श्री अजय गुप्ता जी, गुलशन जी, हिसाली गांववासी सहित अनेक लोगों ने आनंद लिया।