गाजियाबाद।अमर भारती साहित्य संस्कृति संस्थान के तत्वावधान में रविवार को विष्णु सक्सेना के लघुकथा संग्रह 'अंधेरों से आगे’ का लोकार्पण व काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। वेस्ट माडल टाउन स्थित फ़ूड चेज कैफ़े में हुए इस कार्यक्रम में उपस्थित साहित्यकारों ने जहां 'अंधेरों से आगे’ पुस्तक में संकलित लघुकथाओं के कथ्य एवं शिल्प पर अपने विचार रखे, वही गोष्ठी में कवियों ने समकालीन विषयों पर शानदार रचनाओं की प्रस्तुति से समां बांधा।
लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि सुप्रसिद्व लघुकथाकार बलराम अग्रवाल ने अपने संबोधन में कहा कि कथा कहने कि विभिन्न विधाओं जैसे उपन्यास, कहानी, नाटक की तरह लघुकथा भी एक सशक्त विधा के रूप में स्थापित हो चुकी है।आज पठन-पाठन की संस्कृति कमजोर पड़ रही है।उपन्यास या लंबी कहानियाँ पढ़ने का धैर्य बहुत कम पाठकों में बचा है।ऐसे में अच्छी लघुकथाओं की आवश्यकता है।कहावतों की पृष्ठभूमि में छिपी कथाओं का भी इस संदर्भ में उन्होंने ज़िक्र किया।
लघुकथा के कथ्य एवं शिल्प विधान पर विमर्श को आगे बढ़ाते हुए कार्यक्रम के अध्यक्ष चर्चित कथाकार सुधेन्दु ओझा ने कहा कि लघुकथा की शब्द सीमा को लेकर समीक्षकों के बीच अभी तक एक राय क़ायम नहीं हो पायी है।कोई 500 शब्दों में लिखी कथा को लघुकथा बता रहा है तो कोई 1000 शब्दों में लिखी कथा को।इस संबंध में कुछ स्पष्ट नियम तय किए जाने आवश्यक हैं।
इससे पूर्व सुरुचि सक्सेना ने चंडीगढ़ के वरिष्ठ साहित्यकार फूलचन्द मानव व डॉ रमेश कुमार भदौरिया ने वरिष्ठ गीतकार डॉ धनंजय सिंह की समीक्षात्मक टिप्पणियों का पाठ किया।तत्पश्चात् सुरेंद्र अरोड़ा व ओमप्रकाश कश्यप ने पुस्तक में वर्णित लघुकथाओं के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कविता की तरह लघुकथा में भी प्रतीकों व बिंबों को महत्वपूर्ण बताया।इस अवसर पर विष्णु सक्सेना ने अपनी दो लघुकथाओं का अपने अंदाज में पाठ भी किया।
इस अवसर पर आयोजित काव्य गोष्ठी में डॉ योगेंद्र दत्त शर्मा, वेद शर्मा वेद, जगदीश पंकज, डॉ आर के भदौरिया, नेहा वैद, अवधेश सिंह बंधुवर, तूलिका सेठ, प्रतिभा पुष्प ने काव्य पाठ किया।अमर भारती साहित्य संस्कृति संस्थान के महासचिव प्रवीण कुमार ने कार्यक्रम का सफल संचालन किया।
कार्यक्रम में वीना सक्सेना, सुरुचि सक्सेना, निधि राज व रूपक राज आदि साहित्य प्रेमी मौजूद रहे।