'हृदयस्पर्शी भारतवर्ष गाथा'
फहराता तिरंगा जहाँ "सोने की चिड़िया" है नाम, कृष्ण की बंसी, रामधुन से होती हर सुबह-शाम। कुछ बात अलग थी उन वतन के मतवालों की, ना सोचा घर संसार, ना सोचा चाहने वालों की वतन के वास्ते कुछ कर गुजरने का ज़ज्बा रखो, जैसे भी हो सके, तुम कुछ तो अपना हिस्सा रखो। हर बार नहीं मिलता मौक़ा देश के काम आने का, कर्तव्य अपना समझो तुम, देश को आगे बढ़ाने काकितनी मुश्किलों से पायी है ये जिंदगी अनमोल, ज़रा समझो तुम इस देश की माटी का मोल। मन्नत है देश हमारा यूंही शान से जीता रहे, इस देश के लिए हमारा कुछ तो योगदान रहे। कुछ कर जाओ अपनी इस धरती के नाम, कल याद करेगा तुमको अपना हिन्दुस्तान। कर्ज हे हम पर आजाद भगत जैसे वीरों का सब कुछ खो कर, सब कुछ हमें वो दे गए। कर्ज़ को उनके हमें दिल से चुकाना है, उन वीर को पूरूषों को धन्यवाद हमारा है। इस धरती के त्यौहार सभी अलबेले हैं, कहीं होली के रंग कहीं दिवाली के मेले हैं। विश्वशांति हो जगत में यही प्रयास है हमारा, विश्वगुरु कहलायेगा एक दिन भारत देश हमारा।
-शिल्पा वशिष्ठ (योगिता )